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Sunday 4 December 2011

"तेरे क़दमों के निशां"


इस ज़िन्दगी में छिपे थे कुछ लम्हे,
लम्हे नहीं शायद-
कुछ अनकही सी -अनजानी सी बातें |
इक बार फिर से रूबरू हूँ-
आज जिनसे मैं शायद |
हाँ शायद खोयी हुई सी पहचान मेरी |
कुछ पुरानी सी ख्वाहिशें,
कहीं छिपी हुई सी-
दिल के कोने में खोयी सी-
ख़्वाबों के पन्नों में दबी हुई सी |
अनजाने में ही आज ,
कुछ पन्ने-
हाँ वही पुराने पन्ने ज़िन्दगी के,
उभरे थे-
आँखों के सामने से गुज़रे थे |
तेरी याद में काटे हुए ये वही लम्हे थे-
जिन्हें कभी भूल ना पाया,
हाँ ये वही ख्वाहिशें थीं, जिन्हें पूरी ना कर पाया |
अब तो यह पन्ने भी धुंधले हो गए हैं,
तेरी वापसी की राह पर अब,
तेरे क़दमों के निशां,
जो सहेज कर रखे थे
धूमिल से हो गए हैं |
अब - मिटटी में मिल गए हैं अरमान सारे -
जो कुछ भी संजोये थे 
अब मिट चुके हैं,
हाँ वो यादों के निशां,  अब मिट चुके हैं |

                                                    -"परब्रह्म"

Monday 11 July 2011

"चला जा रहा हूं ..."

शायद इन्ही किरणों को खोजने निकला हूं ...
मै हार चुका हूँ ,
खुद से -
तुम सबसे ;
ज़िन्दगी का कुछ - 
नहीं पता मुझे ,
क्या कर रहा हूँ ?
बस किये जा रहा हूँ ,
ज़िन्दगी जिए जा रहा हूँ |
आशा की किरण ,
जगमगाती तो है कहीं
इन्ही किरणों को खोजने -
बस , चला जा रहा हूँ ;
प्रेम अब भी किये जा रहा हूँ | 
ईश्वर का विश्वास 
है अब भी मेरे साथ ,
और थोड़ा सा प्यार लेकर ,
आगे बड़े जा रहा हूँ |
चला जा रहा हूँ |
इसी आस में -
कि इक दिन शायद
मिलेंगी कुछ किरणे कहीं ,
जिन्हेंदूंगा बिखरा मैं, 
दुनिया में यहीं |
पर वो किरने भी तो -
हैं हम सबमे कहीं ;
बस देर है -
उन्हें खोजने की 
और सोचने की -
क्यों हारे हम ?
क्यों हारी उम्मीदें ?
कहाँ हैं वो किरने -
वो खुशियों के झरने- 
वो विश्व शांति के गहने- 
जिन्हें खोजने ,
मै चला जा रहा हूँ..
आगे बड़े जा रहा हूँ.. 
ज़िन्दगी जिए जा रहा हूं... |

- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Sunday 12 June 2011

माँ

काश के तुम होती मेरे साथ आज ,
पर क्या करूँ , ज़िम्मेदारी है तुमपर 
पूरे परिवार की , और आज भी तुम कहती हो 
"मेरे बेटे तेरी यादों में दिन कट जाता है , और 
रातों में तुझे सुलाने को लोरी गाते गाते
दिन चढ़ आता है | " 

- अक्षय ठाकुर  "परब्रह्म" 

Saturday 12 February 2011

खुशियों का घर

स्वर
कभी निकलता भी नहीं मुख से
समझ के भी कोई क्या करे
ये आँखें 
आज भी सब कह देती हैं
कमबख्त 
पागल हूँ मै 
आंसू भी तो कम नहीं 
खुशियों का घर बनाने चले थे 
वापस वही समुन्दर
आंसुओं का सैलाब 
बहा ले गया
मेरी ज़िन्दगी के कुछ हसीं पन्ने |

अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

Thursday 27 January 2011

"Shining India"


"The Sky is Shining 
With Millions and Millions of Stars ,
The Wonderful Sun is Smiling
With the Rays of Hope and Joy ,
See India Shining in Glory
See India Shining in Pride.
India , My motherland best as any Mother
To me , at par with best world ever.
India's Invention of Zero and Decimal ,
Critical to scientific Calculation , Invention.
India Shining
Incredible India
Lead India 
Exotic India
Unveiling Desires of India
Let's face it , 
It's still India
It's our India. "

              -Akshay Thakur "Parabrahm"

 
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