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Thursday 30 September 2010

यादें ...!

हे ईश्वर !
मै तो जा रहा हूँ
पर , जाते हुए तुझको
तेरी कुछ चीज़ें लौटा रहा हूँ
वो सूना आकाश , सूखे हुए ये बादल
वो भयावह बिजली का कड़कना
वो समुन्दर की विशाल लहरें , और
डूबता हुआ सूरज , अब लौटा रहा हूँ |
फूलों और खिलौनों संग खेला वो बचपन ,
वो मिटटी और अब मेरी राख ;
मेरे सारे जज़्बात और वो प्यारे एहसास
आँखों के आंसू और वो होठों की मुस्कुराहट ,
वो मेरी "कलम" और "कागज़" के कुछ टुकड़े भी
आज लौटा रहा हूँ |
पर मै न लौटा पाऊंगा
मेरी माँ का वो आँचल ,
जिसमे था दुनिया भर का प्यार
पापा की वो मार और बुआ का प्यार
दादी का स्नेह , बहन की राखी ,और
वो मेरा "प्यार" , न लौटा पाऊंगा
कभी नहीं लौटा पाऊंगा !
                                       -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

Friday 10 September 2010

खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!

इक दिन मैं निकला यूँ ही
चलो , ये दुनिया घूम कर आता हूँ ,
लोगों से मिलकर आता हूँ |
कुछ खुशियाँ , कुछ दुःख के पल  ,
थोड़ा बच्चों संग किलकारी मार कर आता हूँ ;
चिड़ियों के संग चहक कर , उनको 
घर तक छोड़ कर आता हूँ |
इस सुन्दर नीले आकाश में 
कुछ दूर घूम कर आता हूँ |
सागर कि गहरी साँसों में
इन उठती गिरती लहरों से
उठकर गिरना , गिरकर उठना
सीख कर आता हूँ |
इन रंग बिरंगे फूलों से  .
सबको महकाना सीख कर आता हूँ |
इन ऊंचे नीचे पर्वत से 
कुछ जज्बा सीख कर आता हूँ  |
इस अविरल झरने के पानी से 
बहते रहना सीख कर आता हूँ ,
कुछ खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ |
दुःख को सिमटा कर आता हूँ 
कुछ आंसू पोछ कर आता हूँ ,
लोगों को हंसा कर आता हूँ  |
मैं दुनिया घूम कर आता हूँ
खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!


                   -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 
 
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