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Saturday 13 November 2010

" माँ की ममता "

अरे ओ नौजवानों  ,
अब उठो और
खुद से ये पूछो |
दिया जिसने तुम्हे है सब कुछ
उसी के दिल -
-से आज तुम पूछो
कभी हमसे भी पूछो ,
और लोगों से भी पूछो |
किया तुमने है क्या 
उस माँ की खातिर
जिसने तुम्हे ममता परोसी है |
आँचल से लिपटकर जिसके
दुनिया ये सोती है |
जिसका जीवन बना आदर्श 
आज फिर , ममता वो रोई है |
जिसने सभी के चेहरों पर
मुस्कान है लायी ,
वो ममता आज फिर 
खुद हंस-हंस के रोई है |
जिसने खुद जगकर
हमको सुलाया है ,
उसी माँ की इन आँखों से 
आज फिर नींद गायब है |
किया हमने है क्यों ऐसा 
कि "ममता" खुद ही रोई है |
जिन सपनो को उसने 
तिल-तिल पिरोया है
उन्ही सपनो कि गहराई में आज
मेरी माँ फिर से खोयी है |
क्यों ये ममता आज फिर
ज़ोरों से रोई है !

                                                --अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

2 comments:

Anonymous said...

Bahut achha likhte hain aap ! Keep it up ! :)

Sudha said...

Kyoon roti hai mamta?? I have always seen my ma and her ma ecstatic.. I myself am a very happy n loved mum.. Yeh padh ke dil sad sad ho gaya :-(
Very nicely written, but, I NEVER wanna identify with it :-))

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