एक आस जगी है ,
चुनावी मौसम है
और प्यास बड़ी है |
नेता आयेंगे ,
नोट लायेंगे ,
हम तो हैं नालायक ;
फिर से नोट खायेंगे |
वोट करने भी जायेंगे
पर वापस आकर ,
बार बार चिल्लायेंगे
इसने तो कुछ किया नहीं |
अगली बार ,
दूसरे नेता को जिताएंगे
फिर से नोट खायेंगे |
फिर पांच साल के लिए
काल कोठरी में छिप जायेंगे |
हम तो हैं नालायक
फिर से नोट खायेंगे !
-अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"
3 comments:
heheheheheheeeeeeeee
You BET! Hahaha... I loved the illustration also :-)
नेता- करोड़ों की दलाली खा..
डकार भी नहीं मारते ...
अपनों को फायदा पहुँचा..
मन ही मन मुस्काते हैं. |
-Doc
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