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Saturday, 13 November 2010

"थोड़ा बड़ा हो गया हूँ..."

बस थोड़ा बड़ा हो गया हूँ ,
अब खुद को समझने लगा हूँ
सोचा तो था के 
दुनिया मेरी है ,
जब आँख खुली तब लगा
सपना देख रहा हूँ |
जिन्हें कभी अपना कहा था
वसुधैव कुटुम्बकम का अर्थ समझा था ,
उन्होंने ही रुला दिया 
हमेशा के लिए मुझे सुला दिया |
अब तो मै खुद
चलने लगा हूँ
लोगो को परखने लगा हूँ
कभी बैसाखी से चलने वाला "मै"
आज खुद के पैरो पर खड़ा हूँ
देखकर अब ख़ुशी होती है के
अब खुद को समझने लगा हूँ
पर , मेरे कुछ सपने
स्वर्णिम विश्व के लिए
आज भी आँखों में हैं लेकिन
उन्हें दफ़न कर आगे बढ चला हूँ |
बस थोड़ा बड़ा हो गया हूँ
अब खुद को समझने लगा हूँ |
                                -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 
 
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