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Friday, 10 September 2010

खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!

इक दिन मैं निकला यूँ ही
चलो , ये दुनिया घूम कर आता हूँ ,
लोगों से मिलकर आता हूँ |
कुछ खुशियाँ , कुछ दुःख के पल  ,
थोड़ा बच्चों संग किलकारी मार कर आता हूँ ;
चिड़ियों के संग चहक कर , उनको 
घर तक छोड़ कर आता हूँ |
इस सुन्दर नीले आकाश में 
कुछ दूर घूम कर आता हूँ |
सागर कि गहरी साँसों में
इन उठती गिरती लहरों से
उठकर गिरना , गिरकर उठना
सीख कर आता हूँ |
इन रंग बिरंगे फूलों से  .
सबको महकाना सीख कर आता हूँ |
इन ऊंचे नीचे पर्वत से 
कुछ जज्बा सीख कर आता हूँ  |
इस अविरल झरने के पानी से 
बहते रहना सीख कर आता हूँ ,
कुछ खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ |
दुःख को सिमटा कर आता हूँ 
कुछ आंसू पोछ कर आता हूँ ,
लोगों को हंसा कर आता हूँ  |
मैं दुनिया घूम कर आता हूँ
खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!


                   -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Saturday, 28 August 2010

रात अभी भी बाकी है ...!

ये रात अभी भी बाकी है ,
कुछ काम अभी भी बाकी हैं |
ये बात बहुत है छोटी सी ,
और दुनिया बदलना बाकी है |
पर दुनिया कि क्या बात करें , अभी
खुद को ही बदलना बाकी है ;
हम खड़े तो थे इस पार मगर ,
मीलों तक चलना बाकी है ;
ये रस्ता बहुत है संकरा सा , मगर
दुनिया को दिखाना बाकी है
पर दुनिया कि क्या बात करें ,
खुद भी तो चलना बाकी है |
ये रात अभी भी बाकी है ,
दिन को भी निकलना बाकी है
सूरज का चमकना बाकी है , और
किरणों का बिखरना बाकी है ...!
                  
                             -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 
 
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