चलो , ये दुनिया घूम कर आता हूँ ,
लोगों से मिलकर आता हूँ |
कुछ खुशियाँ , कुछ दुःख के पल ,
थोड़ा बच्चों संग किलकारी मार कर आता हूँ ;
चिड़ियों के संग चहक कर , उनको
घर तक छोड़ कर आता हूँ |
इस सुन्दर नीले आकाश में
कुछ दूर घूम कर आता हूँ |
सागर कि गहरी साँसों में
इन उठती गिरती लहरों से
उठकर गिरना , गिरकर उठना
सीख कर आता हूँ |
इन रंग बिरंगे फूलों से .
सबको महकाना सीख कर आता हूँ |
इन ऊंचे नीचे पर्वत से
कुछ जज्बा सीख कर आता हूँ |
इस अविरल झरने के पानी से
बहते रहना सीख कर आता हूँ ,
कुछ खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ |
दुःख को सिमटा कर आता हूँ
कुछ आंसू पोछ कर आता हूँ ,
लोगों को हंसा कर आता हूँ |
मैं दुनिया घूम कर आता हूँ
खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!
-- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"
-- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"