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Sunday, 31 October 2010

"बचपन "

माँ की वो बातें
कुछ प्यारी कुछ मीठी
वो मेरी यादें ,
कभी उनके पल्लू 
में छिपकर वो हँसना ,
कभी उनकी बिंदी 
को खुद ही लगाना ,
कभी शैतानी पे
माँ का वो आँखें दिखाना
फिर दादी के पीछे
जाकर के छिपना |
वो फ्रिज से मिठाई 
चुराकर के खाना ;
मिटटी के घर
और कागज़ की 
नावें बनाना ;
बारिश की बूँदें
पकड़ने की नाकाम सी कोशिश |
तितलियों के पंख में
रंगों को गिनना ,
वो बचपन मेरा ;
प्यारा सा बचपन |
फिर से लौट आये ,
वो मस्ती सा बचपन |
वो बचपन मेरा
एक प्यारा सा बचपन !

                                     -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

1 comments:

Unknown said...

yar yaha to kisi ne coment hi diya.....
koi gal nai mai diye deti hu abhi....
this poetry ws awesome, i loved it
wen i ws a kid,
i loved it to do the thngs jst like this poetry
nw also i like to do all this childish thng
making boats, playing wid butterflies
& etc........
jst keep going
gud luck....

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