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Tuesday, 14 December 2010

"आंसू का अस्तित्व "

आज रोया मै , तभी 
इन आंसुओं से पूछ बैठा
बता मेरी आँखों के पानी 
तेरा अस्तित्व ही है क्या  ?
कभी हंसने पे तू निकले
कभी रोने पे बह जाए ..|

      --अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Sunday, 28 November 2010

" ये मेरी ज़िन्दगी "

कभी पास तो कभी दूर है
ये मेरी ज़िन्दगी |
कभी खुश तो कभी गम है 
ये मेरी ज़िन्दगी |
कभी अँधेरी तो कभी रौशनी है
ये मेरी ज़िन्दगी |
कभी धुएं में तो कभी श्वेत वर्णी है
ये मेरी ज़िन्दगी |
कुछ खट्टी पर बहुत मीठी है
ये मेरी ज़िन्दगी |
कहीं तकरार तो कहीं ढेर सारा प्यार है
ये मेरी ज़िन्दगी |
कहीं तो शुरू है पर अंत नहीं है 
ये मेरी ज़िन्दगी |
बस चलते जाने की और खुशियाँ लुटाने की खातिर है
ये मेरी ज़िन्दगी |
                                            -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

" हिम्मत "


कितनी बार कहा है तुमसे
रोना धोना बंद करो
हिम्मत करके तुम आगे बढ़ो
अधिकारों के लिए अब खुद ही लड़ो
कभी हंसकर के जो तुमने
ये कुछ सपने संजोये थे
उन्हें साकार करने के लिए 
तुम डटकर आज आगे बढ़ो
हिम्मत ऐसी हो दिल में
कि हिम्मत खुद ही डर जाए
क्या हिम्मत दूसरों में फिर 
जो तुझको रोकने आयें !
                              -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

Saturday, 13 November 2010

" माँ की ममता "

अरे ओ नौजवानों  ,
अब उठो और
खुद से ये पूछो |
दिया जिसने तुम्हे है सब कुछ
उसी के दिल -
-से आज तुम पूछो
कभी हमसे भी पूछो ,
और लोगों से भी पूछो |
किया तुमने है क्या 
उस माँ की खातिर
जिसने तुम्हे ममता परोसी है |
आँचल से लिपटकर जिसके
दुनिया ये सोती है |
जिसका जीवन बना आदर्श 
आज फिर , ममता वो रोई है |
जिसने सभी के चेहरों पर
मुस्कान है लायी ,
वो ममता आज फिर 
खुद हंस-हंस के रोई है |
जिसने खुद जगकर
हमको सुलाया है ,
उसी माँ की इन आँखों से 
आज फिर नींद गायब है |
किया हमने है क्यों ऐसा 
कि "ममता" खुद ही रोई है |
जिन सपनो को उसने 
तिल-तिल पिरोया है
उन्ही सपनो कि गहराई में आज
मेरी माँ फिर से खोयी है |
क्यों ये ममता आज फिर
ज़ोरों से रोई है !

                                                --अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

" चुनावी मौसम "

दिल में फिर 
एक आस जगी है ,
चुनावी मौसम है
और प्यास बड़ी है |
नेता आयेंगे ,
नोट लायेंगे ,
हम तो हैं नालायक ;
फिर से नोट खायेंगे |
वोट करने भी जायेंगे
पर वापस आकर ,
बार बार चिल्लायेंगे
इसने तो कुछ किया नहीं |
अगली बार ,
दूसरे नेता को जिताएंगे
फिर से नोट खायेंगे |
फिर पांच साल के लिए
काल कोठरी में छिप जायेंगे |
 हम तो हैं नालायक
फिर से नोट खायेंगे !

                                    -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

"थोड़ा बड़ा हो गया हूँ..."

बस थोड़ा बड़ा हो गया हूँ ,
अब खुद को समझने लगा हूँ
सोचा तो था के 
दुनिया मेरी है ,
जब आँख खुली तब लगा
सपना देख रहा हूँ |
जिन्हें कभी अपना कहा था
वसुधैव कुटुम्बकम का अर्थ समझा था ,
उन्होंने ही रुला दिया 
हमेशा के लिए मुझे सुला दिया |
अब तो मै खुद
चलने लगा हूँ
लोगो को परखने लगा हूँ
कभी बैसाखी से चलने वाला "मै"
आज खुद के पैरो पर खड़ा हूँ
देखकर अब ख़ुशी होती है के
अब खुद को समझने लगा हूँ
पर , मेरे कुछ सपने
स्वर्णिम विश्व के लिए
आज भी आँखों में हैं लेकिन
उन्हें दफ़न कर आगे बढ चला हूँ |
बस थोड़ा बड़ा हो गया हूँ
अब खुद को समझने लगा हूँ |
                                -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Sunday, 31 October 2010

"बचपन "

माँ की वो बातें
कुछ प्यारी कुछ मीठी
वो मेरी यादें ,
कभी उनके पल्लू 
में छिपकर वो हँसना ,
कभी उनकी बिंदी 
को खुद ही लगाना ,
कभी शैतानी पे
माँ का वो आँखें दिखाना
फिर दादी के पीछे
जाकर के छिपना |
वो फ्रिज से मिठाई 
चुराकर के खाना ;
मिटटी के घर
और कागज़ की 
नावें बनाना ;
बारिश की बूँदें
पकड़ने की नाकाम सी कोशिश |
तितलियों के पंख में
रंगों को गिनना ,
वो बचपन मेरा ;
प्यारा सा बचपन |
फिर से लौट आये ,
वो मस्ती सा बचपन |
वो बचपन मेरा
एक प्यारा सा बचपन !

                                     -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

Thursday, 30 September 2010

यादें ...!

हे ईश्वर !
मै तो जा रहा हूँ
पर , जाते हुए तुझको
तेरी कुछ चीज़ें लौटा रहा हूँ
वो सूना आकाश , सूखे हुए ये बादल
वो भयावह बिजली का कड़कना
वो समुन्दर की विशाल लहरें , और
डूबता हुआ सूरज , अब लौटा रहा हूँ |
फूलों और खिलौनों संग खेला वो बचपन ,
वो मिटटी और अब मेरी राख ;
मेरे सारे जज़्बात और वो प्यारे एहसास
आँखों के आंसू और वो होठों की मुस्कुराहट ,
वो मेरी "कलम" और "कागज़" के कुछ टुकड़े भी
आज लौटा रहा हूँ |
पर मै न लौटा पाऊंगा
मेरी माँ का वो आँचल ,
जिसमे था दुनिया भर का प्यार
पापा की वो मार और बुआ का प्यार
दादी का स्नेह , बहन की राखी ,और
वो मेरा "प्यार" , न लौटा पाऊंगा
कभी नहीं लौटा पाऊंगा !
                                       -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

Friday, 10 September 2010

खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!

इक दिन मैं निकला यूँ ही
चलो , ये दुनिया घूम कर आता हूँ ,
लोगों से मिलकर आता हूँ |
कुछ खुशियाँ , कुछ दुःख के पल  ,
थोड़ा बच्चों संग किलकारी मार कर आता हूँ ;
चिड़ियों के संग चहक कर , उनको 
घर तक छोड़ कर आता हूँ |
इस सुन्दर नीले आकाश में 
कुछ दूर घूम कर आता हूँ |
सागर कि गहरी साँसों में
इन उठती गिरती लहरों से
उठकर गिरना , गिरकर उठना
सीख कर आता हूँ |
इन रंग बिरंगे फूलों से  .
सबको महकाना सीख कर आता हूँ |
इन ऊंचे नीचे पर्वत से 
कुछ जज्बा सीख कर आता हूँ  |
इस अविरल झरने के पानी से 
बहते रहना सीख कर आता हूँ ,
कुछ खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ |
दुःख को सिमटा कर आता हूँ 
कुछ आंसू पोछ कर आता हूँ ,
लोगों को हंसा कर आता हूँ  |
मैं दुनिया घूम कर आता हूँ
खुशियाँ बिखरा कर आता हूँ ...!


                   -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Saturday, 28 August 2010

रात अभी भी बाकी है ...!

ये रात अभी भी बाकी है ,
कुछ काम अभी भी बाकी हैं |
ये बात बहुत है छोटी सी ,
और दुनिया बदलना बाकी है |
पर दुनिया कि क्या बात करें , अभी
खुद को ही बदलना बाकी है ;
हम खड़े तो थे इस पार मगर ,
मीलों तक चलना बाकी है ;
ये रस्ता बहुत है संकरा सा , मगर
दुनिया को दिखाना बाकी है
पर दुनिया कि क्या बात करें ,
खुद भी तो चलना बाकी है |
ये रात अभी भी बाकी है ,
दिन को भी निकलना बाकी है
सूरज का चमकना बाकी है , और
किरणों का बिखरना बाकी है ...!
                  
                             -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Thursday, 19 August 2010

I'm not Afraid ...!

I'm not afraid
To take a step , 
To start a life
Which is new to me ,
I'm breaking out off this cage .
I know I'm not alone
I'll set my goals ,
I'll find a path ,
I'll walk this road
Together , with "You" ;
Through the dark storms
Whatever , weather
Cold or warm ,
Shine or dark ,
I'm not afraid .
I had enough
Till when you left ,
I miss you every moment 
I lived your dream .
It wasn't my fault
You got me very wrong ,
You left me like a pawn.
That day
I was afraid , 
But now
I've lived one epoch
Had very much shock ,
I did everything I can
Now , I want to feel this sweet rain
I'm not standing in the bloody drain ,
And , moreover 
I'm not afraid , 
To take a step
I'm not afraid.
                -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Thursday, 12 August 2010

Credulous : The Real Life...!

I woke up ,
It was a plenty morning ,
Sun light was peeping out of clouds
Birds were singing quiet-a-loud.
I went for a walk,
Crossed the road,
Some fountains were sprinkling ,
Some old fellows were walking ,
Some butterflies were flying
I was walking , walking and walking.
I thought there are only
Waves of happiness , in the world , spreading slowly
Then , Suddenly I saw a boy
With no clothes and no toy ,
Looking at the blue sky
Also wants to try ,
To touch the Zenith ,
But he had no choice
Then I realized
"We don't always have a choice"
This is the Real-Life..!
              -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Sunday, 8 August 2010

When Dream comes True ..!

When I was a kid 
I used to play and kid ,
No team , no dream.
When I was 18
I had my team ,
I had my dream.
Wish to fulfill those dreams !
I stopped dreaming in nights ,
I stopped crying in fights ,
I had no choice to act like a mad
I had no choice to be sad
It was about time
I saw a dream with open eyes ,
I had the dream in my eyes ,
I kept the dream in my eyes ,
I did everything for the dreams in my eyes
Now I am the eyes of a million poor people.
Now I have a satisfaction of helping people.
I lived my life
I am 60 Now
I got another dream last night
When I opened my eyes
It was Heaven.
It was really a Heaven..!
                  -- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 
 
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