हे ईश्वर ! मै तो जा रहा हूँ
पर , जाते हुए तुझको
तेरी कुछ चीज़ें लौटा रहा हूँ
वो सूना आकाश , सूखे हुए ये बादल
वो भयावह बिजली का कड़कना
वो समुन्दर की विशाल लहरें , और
डूबता हुआ सूरज , अब लौटा रहा हूँ |
फूलों और खिलौनों संग खेला वो बचपन ,
वो मिटटी और अब मेरी राख ;
मेरे सारे जज़्बात और वो प्यारे एहसास
आँखों के आंसू और वो होठों की मुस्कुराहट ,
वो मेरी "कलम" और "कागज़" के कुछ टुकड़े भी
आज लौटा रहा हूँ |
पर मै न लौटा पाऊंगा
मेरी माँ का वो आँचल ,
जिसमे था दुनिया भर का प्यार
पापा की वो मार और बुआ का प्यार
दादी का स्नेह , बहन की राखी ,और
वो मेरा "प्यार" , न लौटा पाऊंगा
कभी नहीं लौटा पाऊंगा !
-- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"