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Saturday, 31 March 2012

रो पड़ता हूँ...


ये जो यादें है तेरी
कहती हैं बस
कहीं तो जिंदा है तू
इस दिल के किसी कोने में
या मेरे सपनो के 
आँगन में
शायद मेरे आंसू 
इस बात के 
गवाह भी हैं |
आज भी जब
बारिश की
कुछ ठंडी बूँदें
पलकों पर पड़ती हैं,
तेरे साथ बिताये हुए
कुछ मासूम से पल
छलक आते हैं |
मेरी आँखों में
आज भी जब
वो ठंडी सी हवा का-
इक झोंका 
मुझे छू कर
बड़े प्यार से
मुस्कुरा कर
लौट जाता है |
फिर वही रूमानी सा एहसास,
तेरे पास होने का
याद आता है ,
तो -
मेरे आंसू थमते नहीं 
बस -
रो पड़ता हूँ |

--अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 
 
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