कुछ प्यारी कुछ मीठी
वो मेरी यादें ,
कभी उनके पल्लू
में छिपकर वो हँसना ,
कभी उनकी बिंदी
को खुद ही लगाना ,
कभी शैतानी पे
माँ का वो आँखें दिखाना
फिर दादी के पीछे
जाकर के छिपना |
वो फ्रिज से मिठाई
चुराकर के खाना ;
मिटटी के घर
और कागज़ की
नावें बनाना ;
बारिश की बूँदें
पकड़ने की नाकाम सी कोशिश |
तितलियों के पंख में
रंगों को गिनना ,
वो बचपन मेरा ;
प्यारा सा बचपन |
फिर से लौट आये ,
वो मस्ती सा बचपन |
वो बचपन मेरा
एक प्यारा सा बचपन !
-अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"