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Monday, 3 December 2012

एक इच्छा : मेरा भारत ...

विचारों में जो जोश है 
लेखनी की जुबां है , हर भारतवासी की कहानी है | 
काश की ऐसा हो पाता -
गद्दारों का नामों निशां मिट पाता 
भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलाता |

- अक्षय ठाकुर " परब्रह्म"

Saturday, 31 March 2012

रो पड़ता हूँ...


ये जो यादें है तेरी
कहती हैं बस
कहीं तो जिंदा है तू
इस दिल के किसी कोने में
या मेरे सपनो के 
आँगन में
शायद मेरे आंसू 
इस बात के 
गवाह भी हैं |
आज भी जब
बारिश की
कुछ ठंडी बूँदें
पलकों पर पड़ती हैं,
तेरे साथ बिताये हुए
कुछ मासूम से पल
छलक आते हैं |
मेरी आँखों में
आज भी जब
वो ठंडी सी हवा का-
इक झोंका 
मुझे छू कर
बड़े प्यार से
मुस्कुरा कर
लौट जाता है |
फिर वही रूमानी सा एहसास,
तेरे पास होने का
याद आता है ,
तो -
मेरे आंसू थमते नहीं 
बस -
रो पड़ता हूँ |

--अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Tuesday, 21 February 2012

"तो जिंदा हूँ... "

दिल में आंसू का सैलाब लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
मन में दबे कुछ ग़मों का समंदर लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
चेहरे पर खुशियों के झरने लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
आँखों में तेरी बेचैन यादों के साए लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
तेरी मीठी बातों का पुलिंदा सर पर लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
तेरी खिलखिलाती हंसी सीने से लपेटे चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
हर आह में तुझसे बिछड़ने का दर्द लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
हर पल तेरी यादों के दरिया में डूबा हुआ चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
एक तू ही तो है जिसकी एक झलक को खोजता चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
बस तेरी एक झलक को खोजता हुआ चलता हूँ,  तो जिंदा हूँ |
अब बस जिंदा हूँ, तो जिंदा हूँ |

-अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Sunday, 4 December 2011

"तेरे क़दमों के निशां"


इस ज़िन्दगी में छिपे थे कुछ लम्हे,
लम्हे नहीं शायद-
कुछ अनकही सी -अनजानी सी बातें |
इक बार फिर से रूबरू हूँ-
आज जिनसे मैं शायद |
हाँ शायद खोयी हुई सी पहचान मेरी |
कुछ पुरानी सी ख्वाहिशें,
कहीं छिपी हुई सी-
दिल के कोने में खोयी सी-
ख़्वाबों के पन्नों में दबी हुई सी |
अनजाने में ही आज ,
कुछ पन्ने-
हाँ वही पुराने पन्ने ज़िन्दगी के,
उभरे थे-
आँखों के सामने से गुज़रे थे |
तेरी याद में काटे हुए ये वही लम्हे थे-
जिन्हें कभी भूल ना पाया,
हाँ ये वही ख्वाहिशें थीं, जिन्हें पूरी ना कर पाया |
अब तो यह पन्ने भी धुंधले हो गए हैं,
तेरी वापसी की राह पर अब,
तेरे क़दमों के निशां,
जो सहेज कर रखे थे
धूमिल से हो गए हैं |
अब - मिटटी में मिल गए हैं अरमान सारे -
जो कुछ भी संजोये थे 
अब मिट चुके हैं,
हाँ वो यादों के निशां,  अब मिट चुके हैं |

                                                    -"परब्रह्म"

Monday, 11 July 2011

"चला जा रहा हूं ..."

शायद इन्ही किरणों को खोजने निकला हूं ...
मै हार चुका हूँ ,
खुद से -
तुम सबसे ;
ज़िन्दगी का कुछ - 
नहीं पता मुझे ,
क्या कर रहा हूँ ?
बस किये जा रहा हूँ ,
ज़िन्दगी जिए जा रहा हूँ |
आशा की किरण ,
जगमगाती तो है कहीं
इन्ही किरणों को खोजने -
बस , चला जा रहा हूँ ;
प्रेम अब भी किये जा रहा हूँ | 
ईश्वर का विश्वास 
है अब भी मेरे साथ ,
और थोड़ा सा प्यार लेकर ,
आगे बड़े जा रहा हूँ |
चला जा रहा हूँ |
इसी आस में -
कि इक दिन शायद
मिलेंगी कुछ किरणे कहीं ,
जिन्हेंदूंगा बिखरा मैं, 
दुनिया में यहीं |
पर वो किरने भी तो -
हैं हम सबमे कहीं ;
बस देर है -
उन्हें खोजने की 
और सोचने की -
क्यों हारे हम ?
क्यों हारी उम्मीदें ?
कहाँ हैं वो किरने -
वो खुशियों के झरने- 
वो विश्व शांति के गहने- 
जिन्हें खोजने ,
मै चला जा रहा हूँ..
आगे बड़े जा रहा हूँ.. 
ज़िन्दगी जिए जा रहा हूं... |

- अक्षय ठाकुर "परब्रह्म" 

Sunday, 12 June 2011

माँ

काश के तुम होती मेरे साथ आज ,
पर क्या करूँ , ज़िम्मेदारी है तुमपर 
पूरे परिवार की , और आज भी तुम कहती हो 
"मेरे बेटे तेरी यादों में दिन कट जाता है , और 
रातों में तुझे सुलाने को लोरी गाते गाते
दिन चढ़ आता है | " 

- अक्षय ठाकुर  "परब्रह्म" 

Saturday, 12 February 2011

खुशियों का घर

स्वर
कभी निकलता भी नहीं मुख से
समझ के भी कोई क्या करे
ये आँखें 
आज भी सब कह देती हैं
कमबख्त 
पागल हूँ मै 
आंसू भी तो कम नहीं 
खुशियों का घर बनाने चले थे 
वापस वही समुन्दर
आंसुओं का सैलाब 
बहा ले गया
मेरी ज़िन्दगी के कुछ हसीं पन्ने |

अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"
 
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